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सिन्दूर lyrics
ओ मोरे सैंय्या के
बसंत ऋतू आयी
सिलवा दे रे सजनवा
ओ दुनिया बनाने वाले
कोई रोके उसे और यह
ो रूठे हुए भगवन
किसी के मधुर प्यार में
नाम सारे
झट पट घूँघट खोल
चलो चलो चले दूर कहीं
पतझड़ सावन बसंत बहार