Toggle navigation
Lyricsgram
कला बाजार lyrics
सम्भालो सम्भालो
सूरज के जैसी गोलाई
सांझ ढली दिल की लगी
सच हुए सपने तेरे
रिम झिम के तराने
न मैं धन चाहूँ
चाँद खुला आसमान
अपनी तो हर आह एक तूफान है